Wednesday, December 27, 2006

Tuesday, December 19, 2006

एक प्रिय कवि का अध्ययन

"आपका प्रिय कवि कौन है?"

जब भी यह प्रश्न पूछा जाता है तो असद ज़ैदी का नाम सहज ही ज़ुबान पर आ जाता है।
आज ही उनकी कुछ कविताएं बीबीसी की वेबसाइट पर पढ़ीं। एक उठा कर यहां चिपका ली है।

मेरे ब्लॉग का भाव कुछ तो बढ़ा।


नृतत्त्वशास्त्री
नृतत्त्वशास्त्र! इस काम में दिक़्क़त यह है कि अक्सर लोग इसकी बारीकियों को समझते नहीं. मोटे-मोटे सवाल पूछते और ख़ुलासा करते-करते आम आदमी तंग आ जाता है. आखिर क्यों नृतत्त्वशास्त्र? जवाब में एक रोज़ नाटकीय अंदाज़ में मैंने कहा : माट सहाब, जब तक इस दुनिया में नर और नारी हैं, जब तक नृ और तत्त्व हैं, तब तक शास्त्र रहेगा और शास्त्री लोग भी. पास खड़ी देहातिन बोली : ‘ तो शास्त्री जी, कछु शादी ब्याउ भी कराऔ?’ और अपने टूटे-फूटे दाँत दिखाती हुई हँसने लगी. उसकी ननदसे भी रहा न गया : ‘अरी भौजाई, यो तो खुदई कुँआरे एँ. ये का करांगे शादी-आदी!’ कई लोग सस्वर हँसे थे : हा-हा, हो-हो, हा, हि-ही, हू! तो इस तरह परिहास के बीच चल रहा है अपना काम, फ़ील्ड रिसर्च. लोग मेरा अध्ययन ज़्यादा कर रहे हैं, मैं उनका कम.


आखिर की पंक्ति ही शायद इस कविता के अपहरण का मुख्य कारण है।

Sunday, December 17, 2006

रिटर्न टू इनोसेंस?

पहले सोचा कि एक हिंदी का ब्लॉग अलग से लिखूं। Excusively in Hindi। लेकिन हिंदी और अग्रेज़ी का लिखने वाला मैं तो एक ही हूँ। हिंदी बोलना पहले सीखा। पहला प्यार हिंदी है। हालांकि अंग्रेज़ी से भी उतना ही प्यार करता हूँ। और यह स्थिति दो नावों में सवार होने जैसा दुस्साहस बिल्कुल भी नहीं है। After all I Am Plural।

वैसे हिंदी के लिए एक अलग जगह सुरक्षित रखने से यह बहुलता समाप्त तो नहीं होती। बिल्कुल नहीं। आने वाले समय में शायद अलग ब्लॉग बना भी लूँ। Let's see.

हिंदी में लिखने की इच्छा काफी समय से थी। ठीक एक हफ्ते पहले लाल्टू को पहली हिंदी ईमेल लिखी। उसके बाद से हर रोज़ सोचता रहा कि लिखूंगा। और आज इतवार के दिन छुट्टी को भुना रहा हूँ। परिवार के बाकी लोग बाहर दिसंबर की धूप का मज़ा ले रहे हैं। इस पोस्टिंग के बाद थोड़ा समय उनके साथ भी बैठूंगा।

दरअसल हिंदी में लिखने के पीछे एक कारण
लाल्टू का ब्लॉग भी है।

दूसरा कारण जो कि शायद पहला कारण है और जो मैं उपर बता भी चुका हूँ वह है हिंदी से प्यार। या शायद तुलनात्मक रूप से हिंदी से थोड़ी अधिक घनिष्ठता। मातृभाषा पंजाबी है। ईश्वर ने चाहा तो कभी पंजाबी में भी ब्लॉग लिखूंगा। पंजाबी में कुछ अनुवाद तो किया है परंतु मुक्त रूप से, अपना कुछ भी नहीं लिखा। हां, कुछ एक चिट्ठियां ज़रूर लिखी हैं। मुझे याद कि जब मेरी सबसे बड़ी बहन अपनी पढ़ाई के लिए लुधियाना में थी तो मैं उसकी अंग्रेज़ी में लिखी चिट्ठियों का जवाब पंजाबी में दिया करता था। मैं शायद पंजाबी में ही अपनी भावनाओं को ईमानदारी से अभिव्यक्त कर पाता था। लेकिन अंग्रेज़ी या हिंदी में बेईमानी है ऐसा कहना सरासर ग़लत होगा। घर में बचपन से पंजाबी ही बोली जाती रही तो मैं चिट्ठियां किसी और ज़बान में कैसे लिखता। गैर-हिंदी भाषी, गैर-भारतीय मित्रों के साथ अंग्रेज़ी बोलते हुए भी बहुत निकट अनुभव करता रहा हूँ।

तेरह-चौदह साल कि उम्र में अपने एक बहुत ही करीबी दोस्त को हिंदी में ढेरों चिट्ठियां लिखीं। आज भी कई बार चैटिंग करते हैं तो रोमन हिंदी में ही करते हैं।

अब शायद हिंदी - पंजाबी में लिखने की दिशा में सोचने से अपने बचपन और अपने आप को और अच्छे से समझ पाऊं।

Friday, December 08, 2006

"Bachelors, it's your call now."

Bhartesh wanted to know if I am on Orkut. Of course I am, though I still have to gauge its utility. He said he didn't find me when he made a search. "Your location is Chandigarh, right?" "I guess so." I logged in to see if it was. It was. However, there was one change that was needed to be made in the profile.

In fact I had been wondering how would I declare it here, in the cyber world. But it wasn't much of an issue. Jesse had announced it long before I got the chance to proclaim that I am married. So I am not exactly breaking news in the virtual world. But still ...

Pooja and I got married on September 28, 2006 in a civil ceremony.

As I clicked on the radio-button preceding "Married," I did feel a tinge of nostalgia.

But before you read too much into the signifier let me put on record my two months ten days old experience: "The mystery of marriage far outweighs the brouhaha, the bravado and even the blessings of bachelorhood"

So when you hear it said: "Its not good for man to be alone" Pay heed. That's God speaking!